जब हम छोटे थे, तो बारिश को देखते और यह सोचने लगते थे।कि यह पानी आकास में आता काहा से है। तो पिता जी उस समय बोलते थे कि बेटा यह भगवान जी खुश हो जाते हैं तो बारिश कराते हैं, तो उस समय हमारे मन में कई सवाल आंतें है। फिर बारिश कि पानी में भीगने पर इंसान को बीमारी हो जाती है तब उस समय हम भी बारिश में भीगते,जब पिता जी को देखते तो घर में छिप जाते। जब हमारे स्कुल से आते समय बारिश होती। तो हम छाता होते हुए भी बारिश में भीगते हुए आते, सड़क पर जो पानी इकट्ठा होता तो हम हम अपने पैरों से उस पानी को एक दुसरे के उपर उछालते थे। जब बारिश रुक जाती तो हम उसी सड़क के किनारे जमें पानी में हम कागज का पानी जहाज़ बनाते, और उसके बाद उसे पानी में डालकर, वही पर खड़े होकर उसी जहाज़ को देखने लगते। वह कहां तक जायेगा। मेरा जहाज़ आगे जायेगा, या मेरे दोस्त का। कभी- कभी उस जहाज़ को देखकर हम यह सोचने लगते। कि काश दुर - दुर तक पानी होता। और हमरा जहाज़ इतना बड़ा होता कि हम सब उसमें बैठ कर उसे चलाते। कभी कभी तो हम अपने सपनों में भी कागज का जहाज़ बनाने लगते।
जब हम कोंलेज जाने लगे, तो उस समय जब बारिश आतीं थी। तो हम किसी चाय दुकान पर रूककर चाय पीने लगते। उस चाय का भी अपना अलंग ही अंदाज़ होता था। महसूस किजिए कि आपके एक हाथ में चाय हो और आपके आंखों के सामने बारिश कि तेज बुंदे गिर रहीं हों, और हल्का आपके कपरे भी गिले हुए हो, और आपके आंखों के सामने बारिश से बचने के लिए लोग इधर-उधर भाग रहे हो। मैं आज बारिश का बहुत बड़ा शौखिन हु। और उस बारिश में भीगने का उससे ज्यादा।
जो इंसान बारिश से डरते हैं उन्हें हि बारिश का बुखार होता है।एक बार आप बारिश को गले लगाइए, और बारिश आपको गले लगाएगा। उस पल को आप अपने आंखों और सांसों से महसूस किजिए,और हमारे साथ उस महसूस भरी यात्रा शेयर करना ना भूले!
JITESH SINGH
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