जब किसी मानव का जन्म होता है, तो प्रेम का भी जन्म थोड़े समय बाद हो जाता है, छोटे बच्चे जब अपनी मां की गोद में रहते हैं तो वह बहुत खुश रहते हैं, उसी बच्चे को कोई अंजान व्यक्ति लेता है तो रोने रोने लगता हैं। उस समय से उनके जीवन में प्रेम जीवन भी सुरू हो जाता है, और घीरे-धीरे वही प्रेम उनके पिता के साथ और सभी परिवार के सदस्यों के साथ होने लगता है। जब वही छोटा बच्चा स्कुल जाने लगता है, तो बहुत रोता हैं। पर धीरे- धीरे दोस्तों के साथ उनका प्रेम उत्पन होने लगता हैं, और रोजाना स्कूल जाने लगता हैं वो भी बिना रोए । जब वही लड़का घर से बाहर कौलेज की पढ़ाई पूरी करने के लिए जाता है तो एक तरफ घर से दूर जाने का ग़म तो दुसरी तरफ़ शहर देखने की खुशी । अब उस लड़के को घर कि याद भी आती है, तो दूसरी तरफ नये- नये दोस्तों से प्रेम भी होता है। फिर उसके जीवन में एक लड़की आती है, और वह उस लड़के को प्रेम का पाठ पढ़ाती है, पहले तो लड़की बोलतीं है मैं तुमसे प्यार करती हूं ऐसा बोल बोल कर उस लड़के के मन में अपने लिए प्रेम उत्पन कराती है, फिर उस लड़के से नाराज़ होकर उसी प्रेम का उस लड़के को एहसास कराती है तब लड़का बोलता है मुझे प्रेम हुआ है,वो पहली बार। लड़का बोलता हैं, इसको साथ रखने के लिए और मैं तुम्हारे लिए पुरी दुनिया (घरवालों) को छोड़ दुंगा। अब उस लड़के को कौन समझाए कि प्रेम तो तुम्हें जन्म कुछ समय बाद से ही होना सुरू हो गया था। पर तुम्हें एहसास अभी हुआ है अब उसे उस वक्त यह बात समझाएं कौन और किसी ने समझाया भी तो उसे उस वक्त समझ में नहीं आएगा, जब उस लड़के का लड़का होता है और वह भी अपने बच्चे से प्रेम करता है तब उस मानव को याद आता है कि मैं तो जन्म के समय से ही प्रेम रास्तो में चला गया था। और यह रास्ता मरने के समय तक रहेगा। सिर्फ इस प्रेम रिश्ता में मानव बदलते रहेंगे ।
यह एक मानव प्रेम ज्ञान है
प्रेम ही जीवन है जीवन ही प्रेम हैं।ना ही प्रेम के बिना जीवन है ना ही जीवन के बिना प्रेम है
jitesh singh
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