विश्वास ( trust )

यह एक बहुत ही बड़ा topic हैं। इसके लिए मेरे शब्द भी शायद कम पर जाएं। परन्तु कोशिश करूंगा कि आपको मेरे शब्द और definition अच्छा लगेगा।
                                    इस विश्वास नाम के शब्द को सुनने के बाद आपके मन में बहुत सी बातें चल रही होगी। जैसे कि मैं विश्वास में धोखा खाया, इंसान पर से मेरा विश्वास टूट गया, मेरे साथ विश्वासघात हुआ है, इस तरह की कई बातें आपके मन में चल रहा होगा। तो आप को एक बात कि जानकारी  हों जानीं चाहिए कि अगर आप भी ऐसा ही मन में बात कर रहे हैं। तों अपने विश्वास किया ही नहीं। या तो आप अन्धविश्वास, आंख बंद करके विश्वास, या उम्मीद के नाम को आप विश्वास का नाम दे चुके है। विश्वास में किसी प्रकार से धोखा नहीं होता हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि यह बात हमें कैसे समझ में आएगा कि हम किसी पर विश्वास कर रहे हैं, या अन्धविश्वास। 
                                                                  आप किसी को कुछ सामान संभाल कर रखने के लिए दिया हैं और आप समय-समय समय पर जांच कर रहे हैं, और जिसे आपने दिया है उससे उस समान कि जानकारी लें रहें हैं, तो आप विश्वास करते हैं। परन्तु अगर आप उस समान कि जानकारी नहीं रख रहे हैं, और यह बोल रहे हैं कि उस पर हमें विश्वास है तो यह विश्वास नहीं आपका अन्धविश्वास हैं।
                                                                              एक पिता जब अपने बच्चों से कहता है, तुमने मेरा विश्वास तोड़ा है। तों आप समझ लिजिए, कि यह विश्वास नहीं उस पिता को अपने बच्चों से उम्मीद है, जो अक्सर टुटते रहता हैं। अब आप सोच रहे होंगे कैसे ? तों फिर से आपको याद दिला रहा हूं कि विश्वास टुटता नहीं है। या तो वो पिता अपने बच्चों के विषय जानकारी नहीं रखता होगा या वह अपने बच्चों से झुठी उम्मीद लगाए बैठा होगा। जो कभी पुरा नही हो सकता है।
कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं, जानते हैं, कि वो व्यक्ति उनके समान कि हिफाजत नहीं कर सकता है। फिर भी उसे ही संभालने के लिए देंगें। जब उनका समान जो दिया था। वो है, ही नहीं तो अब वो बोलेंगे कि विश्वास करना ही नहीं चाहिए था। तो इसे अन्धविश्वास कहते हैं।‌ ना कि विश्वास।

विश्वास करो, अन्धविश्वास और उम्मीद नहीं ये जुटते कम टुटते ज्यादा हैं!

JITESH SINGH



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